हेल्लो दोस्तों मैं प्रिया शर्मा आज आपके लिये Top 10 Moral Stories in Hindi लेकर आ गयी हूँ इन दस कहानियों में आपको दस अलग अलग तरह की सिख मिलेंगी जिसे आप अपने जीवन में लागु कर अपने जीवन को और सुगम और सुन्दर बना सकते है | इन कहानियों में आपको कौनसी कहानी सबसे ज्यादा पसंद आयी पढ़ने के बाद हमें जरुर बताइयेगा |
मैं आशा करती हूँ दोस्तों की आपको हमारी (Top 10 Moral Stories in Hindi) का संग्रह बहुत पसंद आयेगी और आप कमेंट में अपना सुझाव हमें जरुर देंगे |
तो चलो दोस्तों Top 10 Moral Stories in Hindi के सफ़र को स्टार्ट करते है |
1. बीजों से भरा घड़ा
एक गांव में भरत और कुमार नाम के 2 दोस्त रहते थे एक दिन भरत ने तीर्थ यात्रा जाने का निश्चय किया |
भरत : मुझे वापस आने में कम से कम 1 वर्ष लगेगा इस धन को कहां छुपाऊ ?
तभी भरत ने एक योजना बनाई उसने 5,000 सोने के सिक्कों को एक घड़े में डाला उसके ऊपर कुछ बीच डालें ताकि सिक्के छिपे रहे फिर वह कुमार के घर गया |
कुमार : भरत स्वागत है कैसे हो भाई ?
भरत : मैं अच्छा हूं धन्यवाद क्या तुम मेरी एक सहायता कर सकते हो मैं अपने परिवार के साथ तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं मेरे वापस आने तक क्या तुम यह घड़ा तुम्हारे पास सुरक्षित रख सकते हो ?
कुमार : बस एक ही घड़ा चिंता मत करना मैं देख लूंगा |
भरत 1 वर्ष के बाद भी नहीं आया तो कुमार से रहा नहीं गया उसने घड़े के अंदर क्या है यह देखने के लिए घड़े को खोला और उसे पलटा |
कुमार : हां हां इतने सारे सोने के सिक्के हैं मैं सोने के सिक्के ले लूंगा और घड़े को फिर से बीज भर दूंगा |
कुमार कुछ बीज ले आया और उनसे उससे घड़ा भर दिया कुछ दिनों बाद भरत अपनी यात्रा से लौट आए और कुमार से उसने अपना खड़ा वापस मांगा | उसने घड़े को खाली किया तो उसमें सिर्फ बीज ही थे यह देखकर वह चकित रह गया और कुमार के घर गया |
भरत : कुमार मैंने घड़े में जो सोने के सिक्के रखे थे वह कहां गए ?
कुमार : मैंने कुछ नहीं लिया तुमने तो बीज से भरा घड़ा रखने के लिए दिया था उसमें सोना कहां से आएगा |
भरत उसे कुछ नहीं कहा पर उसे दरबार में ले गया जहा तेनाली राम ने भरत की बात को ध्यान पूर्वक सुना |
तेनाली : भरत कितने महीने पहले इस घड़े को तुमने दिया था |
भरत : लगभग डेढ़ वर्ष पहले |
तेनाली ने घड़े में भरे बीज को देखा बीज बहुत ही ताजा दिख रहे थे
तेनाली : डेढ़ साल पुराने बीज तरोताजा नहीं दिखेंगे ऐसा लगता है कि कुमार ने घड़े को खोला है सोने के सिक्के ले लिए और वह घड़ा ताजी बीजों से भर दिया इसलिए कुमार को भरत के 10,000 सोने के सिक्के वापस देने होंगे |
कुमार ने महसूस किया कि उसकी चोरी पकड़ी गई है पर उसने इस बात से इनकार किया 10000 नहीं उसमें तो सिर्फ 5000 सोने के सिक्के ही थे |
तेनाली : अगर तुमने सोने के सिक्के नहीं लिए तो तुझे कैसे पता चला कि घड़े में केवल 5000 सिक्के ही थे |
और कुमार लज्जित हुआ और उसने सोने के सिक्के भरत को वापस दे दिए | भरत ने तेनाली को धन्यवाद दिए |
(Top 10 Moral Stories in Hindi)
Moral of Story
हमे कभी चोरी नहीं करनी चाहिये क्यूंकि चोरी करना गलत बात है और एक न एक दिन चोरी पकड़ी ही जाती है |
2. आजाद बेटी गुलाम बहु
निर्मला अपनी बेटी मधु को बड़े ही प्यार से रखती उसे पढ़ाती, लिखाती थी फिर खेलने भी भेजती थी और उससे देश दुनिया की सारी बातें करती | मधु पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती थी वह पढ़ाई में भी अच्छी थी लेकिन एक दिन निर्मला की बुआ सास उसके घर आती है |
बुआ सास : अरे निर्मला कहा है तू ?
निर्मला : अरे बुआ आप कब आयी आईये बैठिये |
बुआ सास : ये मत समझना कि मैं कोई खाना खाने या फिर किसी लालच में आई हूं मैं तो यह बताने आयी हु वो पिया नहीं है राधिका की बेटी भाग किस लड़के के साथ |
निर्मला : अरे नहीं बुआ भागी नहीं बल्कि राधिका ने उसे विदेश पढ़ने भेजा है जाने से पहले हम लोगों ने साथ खाना भी खाया था और मधु के पापा ही उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने गए थे |
बुआ सास : हाहा पता है पता है मैं तो तुझे वो बता रही थी जो लोग बात कर रहे है |
निर्मला : यह तो बड़ी गलत बात है लोगों को ऐसी बात नहीं करनी चाहिए |
बुआ सास : अब करनी तो नहीं चाहिये बहु लेकिन तू भी ना किस-किस का मुंह पकड़ लेगी |
यह बोल कर वह वहां से चली जाती है कि तभी हाथ में बैडमिंटन लेकर मधु वहा आती है निर्मला की बुआ सास उसे देखती है और बोल पड़ती है |
बुआ सास : ना कोई नमस्ते है ना पैर छूना और यह हाफ पेंट में शर्म नहीं आ रही |
मधु कुछ कहती उससे पहले ही निर्मला बोल पड़ती है |
निर्मला : बुआ जी वह आपके सवाल का जवाब नहीं दे पाएगी क्योंकि मैंने उसे बड़ों को जवाब देना नहीं सिखाया है | मैं बता देती हूं दरासल साड़ि या दुपट्टा पहनकर बैडमिंटन नहीं खिला जा सकता है | इसीलिए इसने हाफ पेंट पहनी है |
निर्मला : मधु बेटा नहा कर पढ़ने बैठ जाओ |
मधु : जी माँ मैं पढ़ने जा रही हूं आज जल्दी सो जाऊंगी क्योंकि कल मेरी एजुकेशन ट्रिप है
यह कहकर वो वहां से चली जाती है वह सास को बेइज्जती महसूस होती है और वह भी वहां से चली जाती है लेकिन कुछ दिनों बाद………….
निर्मला, मधु और मधु के पिता बाजार जाते हैं जहां फिर से वह बुआ उन लोगों को मिल जाती है |
बुआ सास : अरे राकेश कैसा है आई थी मैं तेरे घर बताया नहीं क्या निर्मला ने |
राकेश : नहीं बुआ निर्मला ने तो कुछ नहीं बताया क्यों क्या हुआ कुछ खास |
बुआ सास : मधु के लिये लड़का देखा है | वह भी कमाऊ इतना कि तेरी बेटी राज करेगी राज एकलौता है बस मां है और कोई नहीं और वह बिना ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं है |
निर्मला : देखिये बुआ मधु तो खुद भी पढ़ी लिखी है अभी तो उसकी पढ़ाई चल रही है कमाऊ तो वह भी बन जाएगी और रहा सवाल सास के मनी का तो भगवान ना करे किसी की मां उससे अलग हो बाकी अभी हम लोगों को मधु की शादी नहीं करनी |
राकेश : अरे निर्मला कैसी बात कर रही हो तुम बुआ से वो बड़ी है हमारे घर की और वह गलत नहीं बोलेंगी | हाँ आप उन लोगों का पता दे दीजिए मैं हूं आऊंगा किसी दिन |
बुआ सास : कोई बात नहीं राकेश शादी ना किसी तरह हो जाए बस |
निर्मला : क्यों ऐसा क्या है ?
राकेश : अरे फिर बोली निर्मला तुम चुप रहो और चलो यहां से |
निर्मला और मधु चुपचाप राकेश के साथ वहां से चले जाते हैं लेकिन निर्मला को लगातार बुआ की बात चुभती है कि आखिर क्यों मधु की शादी के लिए वह इतनी उतावली है अगले दिन शाम को राकेश घर आता है उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा होता है |
राकेश : निर्मला अरे ओ निर्मला कहा हो तुम |
निर्मला : अरे मिठाई क्या बात है आपका प्रमोशन हो गया क्या ? वा जी वा
राकेश : हां हां अब मैं जल्दी ससुर बन जाऊंगा मैंने मधु की शादी उस घर में तय करती है जहां का पता बुआ ने दिया था लड़का बहुत सुंदर है और माँ ………..
निर्मला : मां क्यों मां को क्या हुआ ठीक नहीं है क्या वो |
राकेश : अरे नहीं-नहीं माँ भी ठीक ही है बस उनकी एक शर्त है |
निर्मला : देखिये जी मुझे ऐसी शादी नहीं करवानी जहां शादी से पहले ही लोग शर्त रखने लगे शर्तों में रिश्ते नहीं होते |
राकेश : अरे ऐसी कोई बड़ी भी नहीं है बस वह हमारी मधु से नौकरी नहीं करवायेंगे देखा जाए तो यह भी अच्छा भी है ना |
निर्मला : कैसे अच्छा है क्या बोल रहे हैं आप अरे मैंने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया है कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो |
लेकिन राकेश फिर निर्मला पर गुस्सा हो जाता है
राकेश : मैं जबान दे आया हूं और अब मैं पीछे नहीं हटूंगा चाहे जो हो जाए यह बोलकर राकेश वहां से चला जाता है लेकिन निर्मला वही खड़ी रह जाती है यह सोचते हुए की दाल में जरूर कुछ काला है वह किसी भी तरह अपनी बेटी की शादी उस घर में नहीं करवाना चाहती |
निर्मला अपने दोस्तों से मिलकर बुआ सास का पीछा करवाती है और उसपे नजर रखवाती है | एक दिन बुआ उस लड़के के घर मिलने जाती है और वहा लड़के की माँ से मिलकर निर्मला और उसकी बेटी को निचा दिखाने के लिए प्लान बनती है | यहाँ बात निर्मला को अपने दोस्तों से पता चल जाती है
एक दिन जब बुआ निर्मला के घर आती है तब निर्मला कहती है |
निर्मला : आईये बुआ आईये आपकी ही बारे में सोंच रही थी मुझे पता चल गया की अपने और उस लड़के की माँ ने क्या प्लान बनाया है आपकी चोरी पकड़ी गयी है |
बुआ सास : कैसी चोरी मैं कुछ समझी नहीं ?
निर्मला उसे सब बताती है और बुआ को अपनी गलती का अहसास होता है तो वो वहा से चली जाती है और राकेश भी अपनी गलती का अहसास होता है की उसने अपनी बेटी की शादी ऐसे घर में तय कर दी थी जिसके बारे में उसे ज्यादा कुछ मालूम नहीं था |
Moral of Story
हमें कभी भी अपनी ख़ुशी के लिए दुसरो को परेशान नहीं करना चाहिये |
जो दुसरो के लिए गढ्ढा खोदता है वो ही सबसे पहले उस गढ्ढे में गिरता है इसलिए हमें कभी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिये |
3. नदी का पानी
राजा कृष्णदेव राय के दरबार में बहुत से अकलमंद थे | एक दिन जब दरबार भरा था तो एक बुद्धिमान जिनका नाम देवकियन था उन्होंने राजा से कहा |
देवकियन : महाराज की जय हो मैंने बहुत साल आपकी सेवा की है अब मैं बूढ़ा हो गया हूं अब से मैं आप के दरबार में नहीं आ पाऊंगा मैं अपने गांव जाना चाहता हूं और वहां अपने परिवार के साथ शांति से रहना चाहता हूं |
महाराज : कोई बात नहीं कि आप बूढ़े हो गए हो हमारे राज्य को आपके ज्ञान की जरूरत है ज्ञान कभी बूढ़ा नहीं होता है इसलिए हमें छोड़ कर मत जाइए |
देवकियन : नहीं महाराज मैं चल भी नहीं सकता हूं ना यहां आराम से बैठ सकता हूं इसलिए मुझे जाने दीजिए |
महाराज : आप जो चाहे मैं इस दरबार की सेवा से आपको आजाद करता हूँ खाजा जी इनका सही सम्मान करते हुए खुशी से इन्हें भेजिए |
राजा बूढ़े विद्वान का बहुत आदर करते और उन्हें पसंद करते थे इसलिए उनकी जाने के बाद उन्हें उनकी बहुत कमी महसूस हुई राजा राज्य के काम और राज्य की देखभाल की रोज की बातों की ओर ध्यान काम देने लगे | तेनालीराम इस बदलाव को पहचान गए |
महाराज : सेनापति कई दिनों से तेनाली हमारे दरबार में नहीं आए हैं उन्हें क्या हुआ है ?
सेनापति : महाराज उनकी कोई खबर ही नहीं है उनका घर भी बंद है लगता है कि तेनाली हमारे राज्य को छोड़कर चले गए हैं पहले तो खोजने के लिए मैंने कुछ लोग भी भेजे थे महाराज |
महाराज : क्या तेनालीराम हमारे राज्य छोड़कर चले गए !!! मैंने क्या गलत कर दिया भगवान मुझे ऐसा झंड क्यों दे रहा है ? हे भगवान मैंने ऐसा क्या कर दिया ?
सेनापति : महाराज आप चिंता मत कीजिए हम सब तेनालीराम की वापसी के लिए दुआ करेंगे यदि आपको बुरा ना लगे तो आराम फरमाने के लिए आप राज्य का दौरा कीजिए महाराज |
महाराज : लगता है ये अच्छी सलाह है ठीक है मेरी यात्रा के लिए प्रबंध करो |
राजा नदी किनारे घूमने गए जैसे वह जा रहे थे तो उन्होंने नदी का साफ पानी देखा साथ ही किनारे पर बैठा साधु की दिखा |
महाराज : आहा नदी का पानी कितना ताजा और साफ दिखाई दे रहा है पानी अपनी सुंदरता से मेरा मन मोह ले रहा है इससे मुझे कितना अराम और शांति मिल रहा है |
घुमने के बाद राजा अपने महल में लौट आते हैं | अगले ही दिन वो फिर से नदी किनारे जाते हैं उस दिन भी वो साधू वहीं पर बैठा था |
महाराज : अति सुंदर वही पानी |
साधू : ह्ह्हह…….. ह्ह्ह्हह ……
महाराज : हे साधू आप मुझ पर क्यों हंस रहे हो ? नदी के पानी की तारीफ करना क्या गलत है ?
साधू : हां महाराज
महाराज : क्या गलत है
साधू : आपका कथन महाराज, नदी में जो कल आपने पानी देखा था वह बह चुका है और आज यहां नया ताजा निर्मल पानी है नदी की सुंदरता इसी सच्चाई में है |
साधू : इसी तरह से हमारे जीवन में लोगों का आना और जाना स्वाभाविक है लेकिन उनके जाने से हमारा जीवन नहीं रुकना चाहिए | तो फिर आप इस बूढ़े राजदरबारी के लिए क्यों दुखी हैं जो आपका राज दरबार छोड़ कर चले गए सोचिए महाराज जरा गौर से सोचिए मैंने जो कहा है |
महाराज : मैं जानता हूं लेकिन तेनाली जो जवान है और मुझे बहुत पसंद है वह मुझे छोड़ कर चले गए अपने अलौकिक शक्ति से क्या आप बताएंगे कि वह कहां है |
साधू : मैं जरूर बताऊंगा मैं आपके तेनाली को अभी आपकी आंखों के सामने ला सकता हूं मगर आप को मुझ से एक वादा करना पड़ेगा क्या आप वादा करेंगे |
महाराज : आपको क्या चाहिए, सोने के 10000 सिक्के, आप जो चाहे ले सकते हैं पर मुझे मेरा तेनाली वापस चाहिए |
साधू : इस साधु को सोने के सिक्कों की भला क्या जरूरत मैं तो बस यही चाहता हूं कि आप इस राज्य को बिना किसी चिंता के चलाएं क्या आप मुझसे यह वादा करेंगे महाराज |
वह साधू ही तेनाली राम था |
महाराज : तेनालीराम मैंने जीवन की सच्ची चीज सीखी है धन्यवाद तुम सच में मेरे सच्चे मित्र हो |
Moral of Story
दोस्तों जो चला गया हमें उसका दुःख नहीं मनाना चाहिये बल्कि हमें अपने आने वाले भविष्य के लिए नयी योजनाए बनानी चाहिये |
4. तेनालीराम की तरकीब
एक दिन एक चित्रकार विजय नगर के राजा कृष्णदेव राय के राज महल जा पहुंचा रात्रि का समय था और राजा अपने परिवार के साथ भोजन कर रहे थे चित्रकार ने राजा का चित्र बनाने की आज्ञा मांगी तब राजा ने उससे कहा |
राजा : इस समय मैं अपने परिवार के साथ भोजन कर रहा हूं | तुम इस दृश्य का सुंदर सा चित्र बनाओ |
चित्रकार ने अपनी तूलिका से चित्र बनाना आरंभ कर दिया अभी चित्रकार ने खाने की स्वादिष्ट चीजों का ही चित्र बनाया था कि राजा उठ खड़े हुए और चित्रकार के पास आकर बोले
राजा : चित्रकर देखे तो चित्र कैसा बना है |
चित्रकार का चित्र अधूरा था चित्र में खाने-पीने की सामग्री के अलावा मात्र राजा के पांव ही बने हुए थे | राजा को यह देख कर गुस्सा आ गया और उन्होंने पहरेदारो से उस कलाकार को राज महल से बाहर निकाल देने का आदेश दिया |
चित्रकार को अपना अपमान सहन नहीं हुआ अगले दिन वह बाजार में खड़े होकर राजा के विषय में उल्टी-सीधी बातें बोलने लगा |
संयोग से उसी समय तेनालीराम वहां से गुजर रहा था भीड़ देख वही खड़ा हो गया और उसकी बातें सुनने लगा तेनालीराम ने चित्रकार की बातें सुनी और चित्रकार के पास जाकर धीरे से कहा
तेनाली : तुम राजा से अपने अपमान का बदला लेना चाहते हो तो मेरे साथ चलो |
तेनाली की बात मानकर चित्रकार चुपचाप उसके घर चल पड़ा तेनाली ने उसे अपनी योजना बताई फिर सारी रात चित्रकार तेनालीराम का चित्र बनाता रहा सुबह सवेरे ही तेनालीराम ने वह चित्र ले जाकर राज महल में दीवार के सामने खड़ा कर दिया |
चित्र को देख प्रत्येक दरबारी को लगा कि स्वयं तेनालीराम वहां बैठे हुए हैं सुबह जब राजा कृष्णदेव राय टहलते हुए वहां पहुंचे तो उन्हें भी ऐसा ही महसूस हुआ परंतु उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आज तेनालीराम उनका अभिवादन क्यों नहीं कर रहा है |
कुछ देर बाद जब राजा दोबारा चित्र के पास से गुजरे तो उन्हें लगा कि तेनाली अभी भी नहीं हिल डुल रहा है |तीसरी बार भी ऐसा ही हुआ अब राजा गुस्से में आकर तेनाली को डांटने लगे |
परंतु उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि वहां तेनाली नहीं बल्कि उसका चित्र रखा हुआ है तेनालीराम से पूछने पर राजा को पता चला कि यह अद्भुत व सुंदर चित्र उसी चित्रकार ने बनाया है जिसे उन्होंने कल राज महल से अपमानित कर बाहर निकाल दिया था |
राजा ने चित्रकार को बुलाकर उसका सम्मान किया और एक थैला भरकर सोने के सिक्के देकर उसे पुरस्कृत किया चित्रकार बहुत खुश हुआ और राजा को धन्यवाद देते हुए बोला |
चित्रकार : महाराज यह सब तेनालीराम के कारण ही संभव हो सका है |
राजा ने उस चित्रकार को विदा करते हुए कहा
राजा : तेनालीराम न केवल तुम्हें गुस्से पर काबू रखने की सीख दी है बल्कि उसने मुझे भी यही पाठ पढ़ाया है |
Moral of Story
तो दोस्तों इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है की हमें हमेशा अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिये |
5. कलयुग के बेटे
ये कहानी एक छोटे से परिवार की है जिसे चार ही लोग रहते थे मोहन और उसकी पत्नी शांति और उसके दो बेटे विजय और चंदू की |
मोहन : यह ले विजय बेटा तेरा नया सूट अब इसे पहनकर ठाट से अपने दफ्तर जाना और चंदू बेटा यह तुम्हारे लिए
शांति : आप अपने नए कपड़े नहीं लाए |
मोहन : अरे शांति तुम तो जानती हो कि मेरा सारा दिन सेठ जी की ड्राइविंग में बीत जाता है नए कपड़े पहन कर घूमने फिरने की फुर्सत किसे है घूमने फिरने के दिन तो इन बच्चों के हैं आखिर मोहन के बेटे हैं |
शांति : आपने तो अपनी सारी जमा पूंजी बेटों के पीछे लगा दी अब अपने पास बचा ही क्या है | विमला के बेटों ने अपने माँ बाप का इस बुढ़ापे में क्या हाल किया है आप जानते ही है | कंही हमारे बेटे भी ऐसे निकल गए तू ?
मोहन : अरे शांति अपने बेटे तो हीरे है हीरे यह दोनों तो मेरे बुढ़ापे के मजबूत कंधे हैं तुम देख लेना यह हमारी जिंदगी भर सेवा करेंगे |
इस तरह मोहन अपने बेटों पर जान लुटाते थे | लेकिन ठीक इसका उल्टा होता है मोहन का छोटा बेटा चंदू पैसे वाली सेठ की बेटी से शादी करके घर जमाई बन जाता है | एक दिन मोहन अपने छोटे बेटे के ससुराल जाता है और चंदू से कहता है
मोहन : अरे चंदू बेटा हमने तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया और तुम हमें छोड़ कर यहां चले आए चल बेटा मेरे साथ घर चल मैं तुझे लेने आया हूं |
चंदू : अरे पिताजी आप क्या चाहते हैं इस ऐशो आराम की जिंदगी छोड़ कर मैं आपके साथ चलूं | नहीं-नहीं पिता जी मैं इतना भी बेवकूफ नहीं हूं और वैसे भी आप लोगों ने मुझे पाल पोस कर कौन सा एहसान किया है यह तो हर मां-बाप का फर्ज होता है |
अपने बेटे के मुख से इतनी कटु वचन सुनकर मोहन निराश होकर लौट जाता हैं |
फिर एक दिन विजय अपनी पत्नी के साथ बाजार से कुछ खरीदारी कर के घर लौटता है |
विजय की पत्नी : अरे ये क्या है मेरे दराज में रखे पैसे कहा गये |
शांति : अरे बहु तेरे बाबूजी की तबियत अचानक बिगड़ गयी थी उनकी दवाइयां लेने के लियेे मैंने तेरे दराज में रखे पैसे ले लिए थे |
विजय की पत्नी : अरे माँ जी जो आपने किया है ना उसे दूसरे शब्दों में चोरी कहते हैं चोरी | कम से कम आप हमारे घर लौटने का इंतजार कर लेती थोड़ी देर में बाबूजी कौनसा स्वर्ग सिधार लेते |
शांति : बहु जरा सोंच समझकर बोला कर | तुझे तो बात करने की थोड़ी भी तमीज नहीं है
विजय की पत्नी : अरे माँ जी आज की दुनिया तमीज से नहीं पैसों से चलती है मैं कुछ नहीं जानती पहले आप मुझे मेरे पैसे वापस लौटाईये | मैंने वो पैसे अपने जन्मदिन मनाने के लिए रखी थी |
अपनी बहू की बदतमीजी और अपने बेटे विजय को खामोश खड़ा देख मोहन को बहुत गुस्सा आता है |
मोहन : बेटा विजय मैं तुम्हारे पैसे आज शाम तक वापस दे दूंगा |
विजय : देखिये पिता जी अब मुझे नहीं लगता की अब इस घर में हम सबका साथ रहना मुनासिब है |
मोहन : हां बेटा रोज की इस किट-किट से अब मैं भी तंग आ गया हूं | अब तो तुम अच्छा पैसा कमा भी लेते हो इसलिए तुम यह घर छोड़कर दूसरी जगह ले लो |
विजय : अरे बाबू जी मैं अपनी नहीं आपके घर छोड़ने की बात कर रहा था कि अब आप लोग यह घर छोड़कर कहीं और रहने चले जाएं |
विजय की पत्नी : हाँ ये सही कह रहे है अब आप दोनों इस घर से निकल जाइए |
शांति : अरे बड़ी आई हमें घर से निकालने वाली तू भूल गई क्या यह घर मेरे नाम पर है मैं इस घर की मालकिन हूं |
विजय की पत्नी : ह्ह्ह्हह माँ जी, इन हवा-हवाई बातों का कोई फायदा नहीं घर के कागजात मेरे नाम पर है |
मोहन : अरे विजय बाबू यह क्या कह रही है मैंने तो तुझसे कहा था कि घर के कागजात अपनी मां के नाम पर बनवाना |
विजय : पिताजी दरअसल मैंने यह घर सुधा के नाम करवा दिया है लेकिन कोई बात नहीं पिताजी आप लोग जितने दिन चाहे यहां रह सकते हैं |
मोहन : इस दया की कोई जरूरत नहीं है बेटा | मोहन के इतने बुरे दिन नहीं आए | चलो शांति यहाँ से |
और मोहन अपनी पत्नी के साथ एक झोपड़ी में रहने लगते है | एक दिन अपने आखिरी दिनों में सेठ भंवरलाल मोहन को अपने पास बुलाते हैं कोई वारिस ना होने के कारण और मोहन की वफादारी की चलते वह अपनी सारी जमीन जायजाद मोहन के नाम कर जाते हैं |
दूसरी तरफ चंदू के ससुर उसे घर से निकाल देते हैं और विजय को भी व्यापार में बड़ा घाटा हो जाता है
विजय की पत्नी : अरे आपको पता है बाबूजी बहुत पैसे वाले बन गए है मैं तो कहती हूं हमें उनके पास जाना चाहिए |
चंदू : हाँ भाभी आप बिल्कुल सही कह रही है आखिर हम उनके बच्चे हैं उनकी सारी दौलत पर हमारा हक है |
फिर अगले दिन
विजय की पत्नी : अरे कितना बड़ा बंगला है मैं तो इसे छोड़कर कंही नहीं जाउंगी |
चंदू : जरा इस कार को तो देखो ह्ह्ह यह बड़ी वाली कार को तो मैं ही लूंगा |
मोहन : अरे इन नालायको को अन्दर किसने आने दिया | चौकीदार इन्हें बाहर निकालो |
चंदू : क्या पिताजी अब गुस्सा थूक भी दीजिए वी आर फैमिली हम आपके ही बैठे हैं ना |
विजय की पत्नी रोने लगती है और रोते रोते कहती है
विजय की पत्नी : माँ जी मैं आपको अकेली नहीं छोड़ सकती आखिर मैं आपकी बहू हूँ आपकी सेवा करना मेरा धर्म है |
शांति : अरे वाह रे बहु तू तो गिरगिट की तरह रंग बदलती है | लेकिन तेरे ताने मुझे आज तक याद है और रही बात मेरे बुढ़ापे की उसकी चिंता तु मत कर |
मोहन : चलो बहुत ड्रामा कर लिया तुम लोगों ने इस घर में तुम लोगों के लिए कोई जगह नहीं है | अब यहां से उल्टे पांव लौट जाओ वरना धक्के मार कर निकलवा दूंगा |
फिर अपना काम नहीं बनता देख वे सभी वहां से चले जाते हैं इस तरह मोहन अपने नालायक बेटों को अच्छा सबक सिखाते हैं और दुनिया के लिए एक मिसाल कायम करते हैं |
Moral of Story
तो दोस्तों इस कहानी से हमें ये सिख मिलती है की जो माता पिता हमें जन्म देते है अपनी पूरी जिंदगी हमारी पालन पोषण में लगा देते है वैसे माता पिता का हमें बुढ़ापे में सहारा बनना चाहिये न की उन्हें दर दर भटकने के लिए अकेले छोड़ना चाहिये |
6. झूठा तोता
एक जंगल में एक तोता रहता था जिसका नाम था बकबक | बकबक बात को बढ़ा चढ़ाकर कहने की बुरी आदत थी | बकबक एक चिड़िया के पास गया और कहा |
बकबक : पता है तुम्हें आज मैंने क्या खाया | सच में बहुत बढ़िया दावत थी बहुत सारी मिठाईयां और फल और बहुत सारा खाना बहुत बड़ी पार्टी थी वो |
चिड़िया : सच में कहाँ पर
बकबक : वो अमीर आदमी के घर पर मैंने बताया था न वो बहुत अच्छा है मुझे मांगे तौफे भी देता है |
कौआ : इतना मत फेको बकबक इस चिड़िया को बेवकूफ मत बनाओ मैंने तुम्हें सुबह ही सुखी मिर्ची खाते हुए देखा था | तुम इसी पेड़ पर बैठकर खा रहे थे |
बकबक : पता है तुम्हें मेरे पास तुम जैसो के लिए वक्त नहीं है | मुझे एक और दावत में जाना है चलता हूँ |
कौआ : चिड़िया तुम उसकी बात मत सुनो वो झूठा है
चिड़िया : ह्म्म्मम्म …………
पर बकबक ने खुद को नहीं बदला वो ऐसे ही डींगे मरता रहा | बकबक एक गाय के पास गया और बोला
बकबक : एक बार मैं चील से भी ऊँचा उड़ा था |
बकबक लोमड़ी के पास गया और बोला
बकबक : शेर मुझे एक बार प्रधानमंत्री बनाना चाहता था पर मैंने मना कर दिया |
बकबक हांथी के पास गया और बोला
बकबक : मेरे पास बहुत सारा खजाना दबा हुआ है मैं ये पूरा जंगल खरीद सकता हूँ |
बकबक मोर के पास गया और बोला
बकबक : कोयल ने मुझसे कहा की मैं उससे बेहतर गाता हूँ |
एक दिन एक कबूतर उस तरफ आया उसे देख चिड़िया बोली
चिड़िया : तुम कितनी सुंदर पक्षी हो कौन हो तुम ?
कबूतर : शुक्रिया मैं कबूतर हूं मैं कुछ ढूंढ रहा हूं |
चिड़िया : कौए भैया, कोयल देखो हमारे यहाँ कौन आया है कितना सुन्दर मेहमान है न |
कौआ : कितना प्यारा पक्षी है |
कोयल : कितना सुन्दर दीखता है शाही पक्षी लगता है |
बकबक : ये कौन है ?
कबूतर : तुम बकबक हो न ?
बकबक : हाँ मैं ही हूँ बकबक तो तुमने मेरे बारे में सुना है |
कबूतर : हाँ दरासल …………
बकबक : देख तुम लोगो ने मेरा कितना नाम है बाहर वालो ने भी मेरे बारे में सुना है | कबूतर जानते हो मैं बहुत सारे देश घूम चूका हूँ
कबूतर : हाँ पर …………
बकबक : मुझे एक बार ब्यूटी प्राइज भी मिला था |
कबूतर : हाँ अच्छी बात है पर मेरी बात तो ……………
बकबक : मैं सबसे अमीर पक्षी हूँ मालूम है इस जंगल में सबसे अमीर
शेर : कबूतर वापस आ जाओ इसके पास पहले से सब कुछ है |
बकबक : ये क्या कहना चाहते है ?
कबूतर : मैं तुम्हें यही कबसे बताने की कोशिश कर रहा हूँ मैं एक शाही नौकर हूँ शेर राजा चाहते थे कि तुम उनके महल में आकर रहो महल का खाना महल में रहना सब कुछ मिलेगा पर लगता है अब उन्होंने अपना मन बदल लिया है
बकबक : मेरे पास कुछ नहीं मैं शेर राजा के महल में आराम से रहना चाहता हूँ |
कबूतर : जाने भी दो मैं अब चलता हूं |
तो देखा दोस्तों की कैसे बकबक की झूठ की वजह से उसे मिलने वाला ऐशो आराम भी उसे नहीं मिल पाया |
Moral of Story
दोस्तों हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिये और न ही किसी बात को जरुरत से ज्यादा बढ़ा चढ़ा कर बोलना चाहिये |
7. सर्वगुण संपन्न बहु
राधिका : नमस्ते आंटी जी
निर्मला : तुम तो ममता की बहू हो ना अंदर आओ अंदर |
राधिका : जी आंटी जी मुझे थोड़ी चीनी मिल सकती है क्या ?
निर्मला : यह कौन सी बड़ी बात है अरे सुधा बहु रसोई घर से थोड़ी चीनी तो ले आओ |
तभी निर्मला देवी राधिका की साड़ी और गहने बड़े गौर से देखती है
निर्मला : अरे वाह बहु तुम्हारी साड़ी तो बहुत सुंदर है और गहनों का तो कहना ही क्या मान गए तुम्हें बहुत ही सलिखे से रहती हो मेरी नजर में तो बहु तुम्हारी जैसी होनी चाहिए |
तभी निर्मला दीदी की बहू सुधा वहां आ जाती है
निर्मला : और एक यह है मेरी बहू इसे तो कपड़े भी पहनने का… खैर जाने दो अच्छा बेटा तुम्हें और कुछ चाहिये
राधिका : नहीं नहीं आंटी जी फिलहाल तो चीनी से काम चल जाएगा चलती हूं मैं |
निर्मला : ठीक है बेटी आती रहना
राधिका : हां हां क्यों नहीं हम दोनों पड़ोसी हैं आखिर
राधिका के जाते ही निर्मला सुधा से कहती है
निर्मला : देखा बहु तूने अच्छे घर की बहू का रहन सहन कैसा होता है एकदम टिपटॉप और एक तू है |
सुधा अपनी सास के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थी इसलिए बिना कोई जवाब दिये घर के काम करने में लगी रहती है | फिर एक दिन राधिका निर्मला के घर आती है और कहती है |
राधिका : ये लीजिये आंटी जी आज मैंने गरमा गरम समोसे और जलेबिया बनाई है जरा चखिए तो सही और बताइए कैसे बने हैं |
निर्मला : क्या बात है बेटी इतने स्वादिष्ट समोसे और जलेबी मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं खाई तू दिखने में जितनी सुंदर है उतनी ही गुनी भी है |
राधिका : ये तो कुछ भी नहीं है आंटी जी मैं चिनिएस खाना बहुत अच्मैंछा बनती हूँ
निर्मला : अच्छा तू ये सब भी बना लेते है |
राधिका : मैं तो बचपन से खाने-पीने के शौकीन हूँ आंटी जी कल आप मेरे हाथों से बना हक्का नूडल खाकर देखिएगा तब आपको पता चलेगा कि असली खाने का स्वाद किसे कहते हैं |
निर्मला : सच बहु ममता बड़ी किस्मत वाली है जो तेरे जैसी बहु उसे मिली है |
राधिका : आपकी बहु सुधा वैसे दिखने में मेरी जितनी सुंदर न सही पर फिर भी ठीक ही है आंटी जी | वैसे घर के काम अच्छी तरह कर ही लेती होगी न |
निर्मला : अरे घर के काम क्या खाक कर लेती है अरे पता नहीं पिछले जन्म में कौन से बुरे काम किए थे कि मुझे सुधा जैसी निकम्मी बहू मिली है | अरे इसे तो ठीक से रोटियां तक बेलना नहीं आता है |
राधिका : अब क्या कर सकते हैं आंटी जी भगवान सबकी बहुओं को मेरे जैसे सर्वगुण संपन्न भी तो नहीं बना सकता ना | अच्छा आंटी जी चलती हूं मैं शाम को मुझे ब्यूटी पार्लर जाना है आप भी चलिए ना मेरे साथ |
निर्मला : मैं पार्लर इस उम्र में
राधिका : अरे आंटी जी अच्छा दिखने की कोई उम्र थोड़ीना होती है आपने शाम को तैयार रहिएगा |
निर्मला : ठीक है बेटी तुम जिद करती हो ठीक है चली जाउंगी |
इस तरह निर्मला देवी राधिका से इतना प्रभावित होती है कि हर वक्त लड्डू की तरह उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थी देखते ही देखते निर्मला देवी राधिका की पक्की फैन बन जाती है | और हमेशा अपनी बहु सुधा को बात-बात पर राधिका की तरफ बनने की नसीहत देती रहती है |
फिर एक रात निर्मला देवी अपनी बहु सुधा को डांटती है |
निर्मला : अरे नालायक खाने में मशाले डालने में इतनी कंजूसी क्यों करती है हमारे यहां मसाला क्या तेरे पिताजी के यहां से आता है जो तू सब्जी में इतना सोच सोच कर डालती है जरा भी स्वाद नहीं है इस सब्जी में |
निर्मला का पति : अरे भाग्यवान सब्जी तो ठीक बनी है तुम बेकार में बहू के ऊपर भड़क रही हो
निर्मला : आप जरा ममता की बहू के हाथों की सब्जी खाकर देखना तब बात करना उंगलिया चांटते रह जाओगे | सच में राधिका के सास ससुर बड़े किस्मत वाले हैं जो उन्हें राधिका जैसी बहू मिली है |
तभी अचानक राधिका के घर से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें आती है
निर्मला का पति : अरे इतने जोर जोर से कौन झगड़ रहा है |
सब लोग बाहर निकलते हैं और देखते हैं कि राधिका अपने सास-ससुर को धक्के मार के घर से बाहर निकाल रही है
राधिका : इतने दिनों से मुफ्त की रोटीया तोड़ रहे हो दोबारा इस घर में नजर मत आना हां
राधिका का पति : अरे लेकिन….
राधिका : आप चुप रहिए और चुपचाप अंदर जाइए |
राधिका जैसे ही अपने पति को आंख दिखाती है वह सहम कर पीछे हट जाता है राधिका के सास ससुर रोते-बिलखते अपना सामान लेकर वहां से चले जाते हैं और सभी लोग तमाशबीन बने चुपचाप ही सब देख रहे होते हैं |
सुधा : क्यों माँ जी आप तो चाहती थी न…. कि मैं इसी की तरह बन जाऊं |
निर्मला : अरे नहीं नहीं बहु मैं तो मजाक कर रही थी | तू तो मेरी बहुत प्यारी बहू है |
Moral of Story
जो बाहर से जैसा दिखता है वैसा वो अंदर से भी हो ये जरुरी नहीं है |
8. Proof of Innocence
राजा कृष्णदेव राय की सारे दरबारी और मंत्री तेनालीराम की शोहरत से बहुत जलते थे वो हमेशा उसे नीचे दिखाने की योजना बनाते थे राजा कृष्णदेव राय जानता था कि दरबारी तेनालीराम के विरुद्ध उसके मन में जहर घोलना चाहते हैं इसीलिए उसने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया |
लेकिन दरबारियों ने जोर दिया उन्होंने राजा के सामने हर रोज तेनाली के विरोध में बातें कहीं कुछ दिनों के बाद राजा ने सोचा कि इनकी बातों में कुछ सच्चाई जरूर होगी |
अगले ही दिन भरी दरबार में जब तेनालीराम आया तो राजा कृष्णदेव राय ने उससे पूछा
राजा : मुझे बहुत ही शिकायत आ रही है कि तुम हमारे राज्य के लोगों को ठग रहे हो और उनसे पैसा ले रहे हो अपने बचाव में तुम क्या कहना चाहोगे |
तेनालीराम : महाराज क्या आप भी उन पर विश्वास करते हैं ?
राजा : हां करता हूं यदि तुम कहते हो कि बेगुनाह हों तो साबित करो |
तेनालीराम को राजा की शब्दों से बहुत अपमानित महसूस हुआ और चुपचाप राजा का दरबार छोड़कर चला गया | अगले दिन जब राजा का दरबार शुरू होने ही वाला था की एक सैनिक आया उसके हाथ में एक पत्र था जो उसने राजा को दिया | { वो पत्र तेनालीराम का था जिसपे लिखा था }
{ महाराज प्रणाम मैंने कई साल आपके ईमानदार मंत्री के रूप में आपकी सेवा की है लेकिन आज मुझ पर झूठा आरोप लगाया गया है मेरी बेगुनाही साबित करने का एक ही रास्ता था कि मैं अपनी जान दे दूं मैं ऐसा ही करूंगा }
राजा : क्या मौत ही तुम्हारी बेगुनाही का सबूत है तेनाली |
एक दरबारी खड़ा हुआ और कहा
दरबारी : तेनाली आपका बहुत ही ईमानदार सेवक था उस पर शक करना कि बड़ी गलती थी |
उसके बाद अगला दरबारी खड़ा हुआ और उससे भी तेनाली के बारे में भली-बातें बताई | तेनाली राजा के दरबार में खड़ा था जैसे ही उसने उनसे अपनी तारीफ सुनी तो उसने अपनी नकली दाढ़ी निकाली और दौड़कर राजा के सामने आया |
तेनालीराम : प्रणाम महाराज सादर प्रणाम |
राजा : तेनाली शुक्र है की तुम वापस आ गये |
तेनालीराम : हाँ महाराज आपके सारे दरबारियों ने मेरी तारीफ ही की है क्या यह मेरी बेगुनाही के लिए काफी सुबूत नहीं है |
राजा : तुम अच्छे आदमी और इमानदार सेवक हो तुम पर शक करना मेरी गलती थी |
तेनालीराम खुश हो गया इस तरह से जलन रखने वाले सारे दरबारियों के सिर शर्म के मारे छुक गए |
Moral of Story
दोस्तों यदि आप अपने जीवन भर ईमानदार और सच्चे बने रहेंगे आपके हमेशा तारीफ ही की जाएगी इसलिए अच्छे बनो |
9. Beautiful Flower
एक समय की बात है कुछ हफ्तों तक राजा कृष्णदेव राय बहुत ही परेशान थे | वो हमेशा अपने ही विचारों में खोए रहते |
सारे दरबारियो ने उसे देखा और चिंतित हो गए | उन्होंने चर्चा भी की राजा को सामान्य रूप में कैसे लाया जाए |
पहला दरबारी : महाराज हमारे राज्य में संगीत नाटक का कोई उत्सव मनाया जाए
दूसरा दरबारी : या राज्य की संपन्नता के लिए कोई यज्ञ किया जाए महाराज
तीसरा दरबारी : महाराज मुझे लगता है कि हम अपने हथियारों की एक प्रदर्शन करवाएं
जब बांकी सभी चर्चा में व्यस्त थे तो तेनालीराम अपनी कुर्सी पर चुप बैठे थे |
राजा : तेनालीराम क्या तुम मेरे लिए कुछ सुझाव नहीं दोगे |
तेनालीराम : महाराज जानते हैं आज सुबह मैंने पृथ्वी का सबसे सुंदर फूल देखा है चाहे तो आप भी देख सकते हैं |
राजा : यदि ऐसा हो तो मैं देखना पसंद करूंगा |
तो राजा, दरबारी और कुछ मंत्री तेनालीराम के साथ गये | जल्दी ही वे बड़े खुले मैदान में गए जहां बहुत से बच्चे खेल रहे थे राजा ने बच्चों को खेलते देखा तो उनके साथ वह भी खेलने लगे यह भूलकर की वो एक राजा है उन्होंने बच्चों के साथ खूब आनंद लिया |
उनके साथ पूरा दिनभर वो बच्चों के साथ खेले | सेवक और तेनालीराम राजा को देखकर बहुत खुश हो गए |
राजा : तेनालीराम बच्चों के साथ खेलने से हम भी बच्चों जैसा महसूस करते हैं सच है ना तेनालीराम इस आनंद की कोई तुलना नहीं हो सकती इससे मैं अपनी सारी चिंता भूल जाता हूं |
तेनालीराम : यह सच है महाराज बच्चों के साथ खेलने से हमें शांति मिलती है मानो ईश्वर की प्रार्थना है इसीलिए कहा गया है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं |
राजा : लेकिन तेनाली तुम मुझे दुनिया की सबसे सुंदर फूल दिखाने वाले थे वह कहां है |
तेनालीराम : क्या आप अभी तक नहीं समझ पाए यह बच्चे ही धरती के सबसे सुंदर फूल है महाराज |
राजा : सच कहा तेनाली इन बच्चों ने मेरी सारी चिंता दूर करती है अब मैं हर महीने इन बच्चों से मिलने आऊंगा | मंत्री इन बच्चों को जो भी खिलौने चाहिए उन्हें दे दो |
Moral of Story
प्यारे बच्चों आप धरती के सबसे सुंदर फूल है हर कोई आपसे प्यार करता है इसलिए अपने आसपास के लोगों को खुश रखें |
10. Panchtantra Ki Kahani
एक जंगल में एक खरगोश और कछुआ रहते थे और खरगोश को बड़ा घमंड था कि वह तेज दौड़ सकता है वह कछुए की धीमी चाल को देखकर खिल्ली उड़ाता था | ऐसे में एक दिन
खरगोश : क्यों कछुआ काका क्या तुम मेरे साथ दौड़ लगाओगे |
कछुआ : क्यों नहीं
खरगोश : हम दोनों में जो जीतेगा उसे बढ़िया इनाम मिलेगा
कछुआ : ठीक है ऐसा ही सही
और इस दौड़ को देखने के लिए जंगल के सारे जानवर बड़ी उत्सुकता के साथ वहां पहुंचे |
खरगोश : हम दोनों में से जो सबसे पहले वो दूर वाली पहाड़ी पर पहुंचेगा समझो वो जीत गया |
कछुआ : ठीक है……..|
जैसे ही दौड़ शुरू हुई खरगोश तेज दौड़ने लगा और कछुआ धीरे-धीरे चलने लगा | खरगोश और तेज दौड़ने लगा और कछुआ अपनी धीमी रफ़्तार से दौड़ने लगा |
अब इस तरह थोड़ी दूर जाने के बाद खरगोश पीछे मुड़कर देखा उसे कछुआ कहीं दिखाई नहीं दिया
खरगोश : ये कछुआ अभी नहीं आने वाला है तब तक मैं थोड़ी आराम कर लेता हूँ वैसे भी ये दौड़ तो मैं ही जितने वाला हूँ |
ऐसे ही आराम करते करते खरगोश की आंख लग गई कछुआ धीरे-धीरे खरगोश के पास पहुंचा और चुपचाप उसे पार कर चला गया | कुछ देर बाद खरगोश की आँख खुली और वो तेजी से पहाड़ की ओर दौड़ने लगा | वहां पहुंचकर उसने कछुए को देखा और कहा
खरगोश : कछुआ काका आप ही जीते मुझे माफ़ कर दो मैं तुम्हारी धीमी चल देखकर तुम्हारी खिल्ली उड़ाता था | लेकिन मैं अब समझ गया हूँ की आप अपनी धीमी चाल की वजह से जल्दी थकते नहीं और मैं जल्दी थक जाता हूँ इसलिए मुझे आराम करनी पड़ती है |
Moral of Story
दोस्तों हमें किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिये क्यूंकि हर किसी के अन्दर कुछ ऐसी क्वालिटी होती है जो वो ही सबसे बेहतर कर सकता है और कोई दूसरा नहीं |